हर साल 15 अगस्त का दिन हम सभी भारतीयों के दिलों में देशभक्ति, गर्व और सम्मान की एक अनोखी भावना जगाता है। लाल किले पर प्रधानमंत्री का भाषण, हवा में लहराता तिरंगा और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की यादें… यह सब हमारे लिए बेहद खास है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत की आज़ादी के लिए 15 अगस्त की तारीख ही क्यों चुनी गई? आखिर क्या वजह थी कि हमें 14 या 16 अगस्त को नहीं, बल्कि इसी खास दिन आज़ादी मिली? इसका जवाब इतिहास के उन पन्नों में छिपा है, जहाँ एक रणनीतिक और व्यक्तिगत फैसला शामिल था।
तय तारीख से पहले मिली आज़ादी
शुरुआत में, ब्रिटिश सरकार ने भारत को 30 जून 1948 तक सत्ता सौंपने की योजना बनाई थी। क्लेमेंट एटली की सरकार ने यह फैसला किया था कि इस तारीख तक भारत को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। लेकिन, भारत के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन को यह एहसास हुआ कि हालात तेजी से बिगड़ रहे थे।
भारत के विभाजन को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू के बीच मतभेद चरम पर थे और देश भर में सांप्रदायिक हिंसा का खतरा बढ़ता जा रहा था। माउंटबेटन को डर था कि अगर जून 1948 तक इंतजार किया गया, तो हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। इसलिए, उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेज करने का फैसला किया।
तो फिर 15 अगस्त की तारीख ही क्यों?
जब आज़ादी की तारीख को पहले करने का निर्णय लिया गया, तो माउंटबेटन ने 15 अगस्त की तारीख को चुना। यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था, इसके पीछे एक बहुत ही व्यक्तिगत और ऐतिहासिक कारण था। लॉर्ड माउंटबेटन 15 अगस्त को अपने करियर के लिए एक भाग्यशाली दिन मानते थे।
दरअसल, ठीक दो साल पहले, 15 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था। उस समय लॉर्ड माउंटबेटन मित्र देशों की सेना में दक्षिण-पूर्व एशिया कमान के सुप्रीम अलाइड कमांडर थे। जापान का आत्मसमर्पण उनके नेतृत्व में हुआ था, जिसे वे अपने जीवन की एक बड़ी सफलता मानते थे।
इसी ऐतिहासिक जीत की दूसरी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख तय की। इस तरह, यह तारीख उनके लिए दोहरी जीत का प्रतीक बन गई। 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट’ पेश किया गया और 18 जुलाई को उसे मंजूरी मिल गई, जिसमें 15 अगस्त को आज़ादी की अंतिम तारीख घोषित किया गया।
समारोह से क्यों दूर थे गांधीजी?
जब 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले पर आज़ादी का पहला जश्न मनाया जा रहा था, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वहां मौजूद नहीं थे। वे उस समय बंगाल के नोआखली में थे, जहाँ वे हिंदू और मुस्लिमों के बीच हो रहे सांप्रदायिक दंगों को शांत कराने के लिए अनशन कर रहे थे। उनका मानना था कि जब तक देश में भाईचारा और शांति स्थापित नहीं हो जाती, तब तक आज़ादी का यह जश्न अधूरा है।
पाकिस्तान 14 अगस्त को क्यों मनाता है स्वतंत्रता दिवस?
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार, भारत और पाकिस्तान दोनों को 15 अगस्त को ही आज़ादी मिली थी। लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए 14 अगस्त को कराची (पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी) और 15 अगस्त को नई दिल्ली में आयोजित समारोहों में हिस्सा लिया। पाकिस्तान ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को ही मनाया, लेकिन बाद में इसे 14 अगस्त कर दिया गया ताकि दोनों देशों के राष्ट्रीय दिवस अलग-अलग हों।
आज, दशकों बाद भी, 15 अगस्त सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि हमारे संघर्ष, बलिदान और एकता का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि एकजुटता से हर मुश्किल पर विजय पाई जा सकती है।
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