कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी? …जानिए

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, यानी भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और आनंदमय त्योहारों में से एक है। यह पर्व सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में बसे कृष्ण भक्तों द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन इस त्योहार से जुड़े कई सवाल हैं, जैसे यह कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है? आइए, इन सभी पहलुओं को विस्तार से जानते हैं।

कब मनाई जाती है जन्माष्टमी?
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी तिथि को आधी रात में हुआ था। इसलिए, जन्माष्टमी की मुख्य पूजा और उत्सव मध्यरात्रि में होते हैं, जिसे निशिता काल भी कहा जाता है। यह समय आध्यात्मिक रूप से बहुत शक्तिशाली माना जाता है, जब भक्त ध्यान और भजन के माध्यम से श्रीकृष्ण से गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं।

क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी? (पौराणिक कथा)
इस पर्व का संबंध उस दिव्य रात्रि से है जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अपना आठवां अवतार लिया था। कथा के अनुसार, मथुरा का राजा कंस एक अत्याचारी शासक था। उसे एक आकाशवाणी द्वारा यह पता चला कि उसकी अपनी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी।

इस भविष्यवाणी से डरकर कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया। उसने एक-एक करके देवकी की सात संतानों की हत्या कर दी। जब आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो कारागार में चमत्कारिक रूप से सभी पहरेदार सो गए और जेल के दरवाजे खुल गए।

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दैवीय निर्देश के अनुसार, वासुदेव जी ने नवजात कृष्ण को एक टोकरी में रखकर उफनती यमुना नदी को पार किया और उन्हें गोकुल में नंद बाबा और यशोदा मैया के पास सुरक्षित छोड़ आए। श्रीकृष्ण का यह जन्म अंधकार, अन्याय और अत्याचार पर देवत्व की विजय का प्रतीक है। इसी दिव्य घटना को याद करते हुए हर साल जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।

कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी? (प्रमुख रीतियां और उत्सव)
जन्माष्टमी का उत्सव पूरे भारत में अलग-अलग तरीकों से, लेकिन एक समान भक्ति-भाव से मनाया जाता है।

पूजा और अनुष्ठान
भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और मध्यरात्रि में कृष्ण के जन्म के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। रात में, मंदिरों और घरों में श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप (लड्डू गोपाल) की मूर्ति को दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराया जाता है, जिसे ‘अभिषेक’ कहते हैं। इसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाकर झूले में बैठाया जाता है और भक्त भजन-कीर्तन करते हुए उन्हें झूला झुलाते हैं।

मथुरा-वृन्दावन में विशेष उत्सव
मथुरा (कृष्ण की जन्मभूमि) और वृन्दावन (जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया) में जन्माष्टमी की रौनक देखते ही बनती है। यहां कई दिन पहले से ही उत्सव शुरू हो जाता है। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है, और श्रीकृष्ण के जीवन की घटनाओं पर आधारित नाटक, जिन्हें ‘रासलीला’ कहा जाता है, का मंचन होता है।

दही हांडी का रोमांच 🍯
महाराष्ट्र और गुजरात में जन्माष्टमी के अगले दिन ‘दही हांडी’ का उत्सव बड़े जोश के साथ मनाया जाता है। यह श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है, जब वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर ऊंचाई पर बंधी मटकियों से माखन चुराकर खाते थे। इस उत्सव में, युवाओं की टोलियां (जिन्हें ‘गोविंदा’ कहा जाता है) एक-दूसरे पर चढ़कर मानव पिरामिड बनाती हैं और ऊंचाई पर लटकी दही और मक्खन से भरी मटकी को फोड़ती हैं।

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छप्पन भोग का दिव्य प्रसाद
जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘छप्पन भोग’ कहते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर सात दिनों तक उठाए रखा था, तब उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। आठवें दिन, ब्रजवासियों ने उनके प्रति अपना आभार और प्रेम प्रकट करने के लिए 56 (7 दिन × 8 पहर) प्रकार के व्यंजन बनाकर उन्हें खिलाए थे। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।